sau gulab khile
चले भी आइये, क्यारी में सौ गुलाब खिले
हमारे मन की अटारी में सौ गुलाब खिले
कभी तो आपकी हम पर रही दया की नज़र !
कभी तो प्यार की क्यारी में सौ गुलाब खिले !
कभी बहार के पाँवों की तो आहट न मिली
भले ही मन की ख़ुमारी में सौ गुलाब खिले
खड़े हुए थे अँधेरे तो दोनों ओर, मगर
किरन-किरन की सवारी में सौ गुलाब खिले
जहाँ था प्यार नज़रबंद आँसुओं से कभी
उसी चहारदिवारी में सौ गुलाब खिले
जतन से ओढ़के चादर तो ज्यों-की-त्यों धर दी
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले