sau gulab khile
जान उन पर लुटाके बैठ गये
हम भी उस दर पे जाके बैठ गये
लाख तूफ़ान उठ रहे थे, मगर
दिल को पत्थर बनाके बैठ गये
क्या हुआ छू गयी जो लट उनकी !
हम ज़रा छाँव पाके बैठ गये
लीजिए, मूँद ली आँखें हमने
आप क्यों मुँह फिराके बैठ गये !
साँस में फूल-से महकने लगे
वे जो परदे में आके बैठ गये
वे भी आये हमारे मातम को
आये और मुस्कुराके बैठ गये
जिनको भाती रही गुलाब की रूह
अब वे मेहँदी लगाके बैठ गये