sau gulab khile

तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता
उन्हें इस ज़िंदगी से प्यार भी करना नहीं आता

ज़रा उँगली पकड़कर दो क़दम चलना सीखा जाओ
पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता

हमारी बेकली का मोल क्या हो उनकी आँखों में !
हमें तो आँसुओं में रंग भी भरना नहीं आता

जलाकर ख़ाक कर देती है अपने मिलनेवालों को
हमारे दिल को पर इस आग से डरना नहीं आता

जिन्हें भाते नहीं है बाग़ में काँटे, गुलाब ! उनको
कभी फूलों से सच्चा प्यार भी करना नहीं आता