sau gulab khile

अब हमारे वास्ते दुनिया ठहर जाये तो क्या !
बाद मर जाने के, जी को चैन भी आये तो क्या !

ख़ुद ही हम मंज़िल हैं अपनी, हमको अपनी है तलाश
दूसरी मंज़िल पे कोई लाख भटकाये तो क्या !

था लिखा क़िस्मत में तो काँटों से हरदम जूझना
कोई दिल को दो घड़ी फूलों में उलझाये तो क्या !

जिनको सुर भाते ग़ज़ल के, वे तो कब के जा चुके
अब इन्हें गाये तो क्या ! कोई नहीं गाये तो क्या !

हर नये मौसम में खिलते हैं नये रंग में गुलाब
एक दुनिया को नहीं भाये तो क्या, भाये तो क्या !