sau gulab khile
दुनिया को अपनी बात सुनाने चले हैं हम
पत्थर के दिल में प्यास जगाने चले हैं हम
हमको पता है ख़ूब, नहीं आँसुओं का मोल
पानी में फिर भी आग लगाने चले हैं हम
फिर याद आ रही है कोई चितवनों की छाँह
फिर दूध की लहर में नहाने चले हैं हम
मन के हैं द्वार-द्वार पर पहरे लगे हुए
उनको उन्हीं से छिपके चुराने चले हैं हम
यों तो कहाँ नसीब थे दर्शन भी आपके !
कहने को कुछ ग़ज़ल के बहाने चले हैं हम
कुछ और होंगी लाल पँखुरियाँ गुलाब की
काँटों से ज़िंदगी को सजाने चले हैं हम