sau gulab khile
दो घड़ी की हँसी-ख़ुशी के लिये
हम हुए क़ैद ज़िंदगी के लिये
वे तड़पने का खेल देखा करें
ज़िंदगी हमको दी इसीके लिये
देवता हम नहीं, न पत्थर हैं
माफ़ कुछ तो है आदमी के लिये
कारवाँ उम्र का निकल भी गया
रह गये बैठे हम किसीके लिये
कब सुबह होगी, कब खिलेंगे गुलाब
दिल तड़पता है उस घड़ी के लिये