sau gulab khile

नहीं कोई भी मरने के सिवा अब काम बाक़ी है
हमारी ज़िंदगी में बस वही एक शाम बाक़ी है

उमड़ आते हैं झट आँसू, कलेजा मुँह को आता है
उसे होंठों पे मत लाओ जो कोई नाम बाक़ी है

नहीं आया जवाब उनका तो हम ख़ुशक़िस्मती समझे
रहा तो दिल में हरदम, ‘उनसे कोई काम बाक़ी है’

तलब आँखों में, चक्कर पाँव में है दिल में बेचैनी
नहीं अब इनसे बढ़कर और कुछ आराम बाक़ी है

गुलाब ! आता है क्या तुमको सिवा आँसू बहाने के !
यही तो ज़िंदगी में बस सुबह और शाम बाक़ी है