sau gulab khile
नहीं दुख ये भार होता, न ये इंतज़ार होता
कभी ज़िंदगी ! मुझे भी तेरा एतबार होता
कोई मुझसे आके पूछे तेरे प्यार की कसक को
कोई तीर ऐसा होता, मेरे दिल के पार होता !
तेरा प्यार मिल भी जाये, तेरा रूप मिल न पाता
जो हज़ार बार मिलते, यही इंतज़ार होता
मेरी शायरी नहीं यह मेरे दिल का आईना है
कभी ख़ुद को इसमें पाकर उन्हें मुझसे प्यार होता !
नहीं उनको अब है भाती, ये महक गुलाब की भी
वही धूल में पड़ा है जो गले का हार होता