sau gulab khile

प्राण में गुनगुना रहा है कोई
फिर मुझे याद आ रहा है कोई

गीत को पंख लग गये जैसे
प्रेरणा बन के छा रहा है कोई

ज्योति किसकी है दूर अंबर में !
क्षुद्र अणु में समा रहा है कोई

कोई है दृश्य, कोई द्रष्टा है
और परदा उठा रहा है कोई

हमने माना कि मौत है हर साँस
फिर भी हमको जिला रहा है कोई

देखता हूँ जिधर, उधर मैं हूँ
अब कहाँ दूसरा रहा है कोई !

देखिए खोलके आँखें तो ज़रा
सामने मुस्कुरा रहा है कोई

आज होंठों पे खिल रहे हैं गुलाब
मेरी ग़ज़लों को गा रहा है कोई