sau gulab khile

बातें हम अपने प्यार की, उनसे छिपाके कह गये
देखिए बात क्या बने, कुछ तो बना के कह गये

कहने की ताब थी न पर, शह उनकी पाके कह गये
जीने की बेबसी को हम सुर में सजाके कह गये

आँखों ने उनकी कल हमें, जाने पिला दिया था क्या !
कह न सके थे जो कभी मस्ती में आके कह गये

भौंहों से, चितवनों से कुछ, आँखों से कुछ सुना दिया
फिर भी जो अनकहा था वह पलकें झुकाके कह गये

काँटोंभरे गुलाब को कोई बड़ा बताये क्यों !
माना कि बात वह भी कुछ, ख़ुशबू उड़ाके कह गये