sau gulab khile

लुभा रही है बहुत उनके देखने की अदा
पर उसको क्यों कहें बादल कि जो बरस न सका !

किसीने देखा, किसीने सुना, किसीने कहा
हमारा जान से जाना भी रंग लाके रहा

रहे हैं एक-से तेवर न ज़िंदगी के कभी
नहीं हैं चाँद और सूरज भी एक-से ही सदा

बनी तो तुमसे किसी और से बने न बने
तुम्हारा है जो किसी और का हुआ न हुआ

मिलेंगे हम जो पुकारेगा दुख में कोई, कभी
हरेक आँख के आँसू में है हमारा पता

सभी के ख़ून की रंगत तो लाल ही है, मगर
वो रंग और ही कुछ है कि जो गुलाब बना