sau gulab khile

वनों में आग है, बिजली भी आसमान में है
तड़प कहीं भी नहीं वह जो मेरे प्राण में है

बिना कहे भी तो आँखों ने कह दिया सब कुछ
सदा से प्यार की गाथा इसी ज़बान में है

कभी वे मेरी, कभी अपनी तरफ़ देखते हैं
कभी तो तीर है दिल में, कभी कमान में है

हरेक शेर था टुकड़ा मेरे दिल का ही, मगर
यही सुना उन्हें कहते–‘नशे की तान में है’

अभी गुलाब की ख़ुशबू भी जी को भाती नहीं
अभी तो कूक ही कोयल की उनके कान में है