sau gulab khile

आप, हम और कुछ भी नहीं !
सब वहम, और कुछ भी नहीं

खुलके बरसे तो काली घटा
आँखें नम, और कुछ भी नहीं !

मर भी जायें तो जायें कहाँ !
यह भरम, और कुछ भी नहीं

दम न आशा कहीं तोड़ दे
दम ही दम और कुछ भी नहीं

लौ कहीं और भी कम न हो
और कम, और कुछ भी नहीं

आये, बैठे, उठे, चल दिये
बेरहम ! और कुछ भी नहीं !

उनके अलबम में सूखे गुलाब
आज हम और कुछ भी नहीं