sau gulab khile

वहीं जो पाँव ठिठक जाय, क्या करे कोई !
नज़र जो ख़ुद ही बहक जाय, क्या करे कोई !

चला तो बाँध के जीवन में उमीदों की गाँठ
मगर जो डोर सरक जाय, क्या करे कोई !

हज़ार प्यार चकोरी को चाँद से है, मगर
घटा जो चाँद को ढँक जाय, क्या करे कोई !

लटों को उलझी हुई ज़िंदगी की सुलझाते
किसीका हाथ जो थक जाय, क्या करे कोई !

गुलाब छिपके भी रह लेंगे डालियों में, मगर
नज़र जो उनकी अटक जाय, क्या करे कोई !