sau gulab khile
सुनते नहीं हैं पाँव की आहट कहीं से हम
बाज़ आये उनके प्यार की ऐसी ‘नहीं’ से हम
अबकी न ज़िंदगी को परखने में होगी भूल
फिर से शुरू करेंगे कहानी वहीं से हम
कहते हो जिसको प्यार, ख़ुमारी थी नींद की
सपना चुराके लाये थे कोई, कहीं से हम
जाओ जहाँ भी सुख से रहो, हमको भुलाकर
धारा है तेज़, लौट रहे हैं यहीं से हम
इतने चुभे हैं प्यार में काँटें गुलाब को
हूक उठती जब भी डाल झुकाते कहीं से हम