sau gulab khile
हम अपने मन का उन्हें देवता समझते हैं
पता नहीं है कि हमको वे क्या समझते हैं
भला भले को, बुरे को बुरा समझते हैं
हम आदमी को ही लेकिन बड़ा समझते हैं
चढ़ा हुआ है सभी पर हमारे प्यार का रंग
कोई न इससे बड़ा कीमिया समझते हैं
समझ ने आपकी जाने समझ लिया है क्या !
ज़रा ये फिर से तो कहिये कि क्या समझते हैं
कोई जो सामने आता है मुस्कुराता हुआ
हम अपने मन का उसे आईना समझते हैं
किसी भी काम न आये, गुलाब ! तुम, लेकिन
समझनेवाले तुम्हीं को बड़ा समझते हैं