seepi rachit ret

ओ सपनों के राजकुमार

यों मारे-मारे फिरते तुम ओ सपनों के राजकुमार!
विस्फारित-दृग, शव से रक्तविहीन, श्वेत, हिम-आनन पर
सूखे आँसू-चिह्न लिये, चुप, जिसने तुम्हें किया है प्यार,
देख तुम्हें यों, मर न जायगी वह अभागिनी विष खाकर!

तब किसने सोचा था यह, अधरों का चुंबन करते ही
सुख की नींद टूट जायेगी! पहली प्रेम सफलता की
उड़ जायेगी वह मदिरा प्याले में भरते-भरते ही
छोड़ नहीं अपने पीछे जीवन में कण भर रस बाकी!

जिस कविता, कल्पना, रूप के जादू से तुमने पल में
मोह लिया था भावुक मन उस बाला का, जिसने तुमको
मुक्त विचरने दिया सदा निज यौवन-मधुवन-अंचल में
झंझानिल-सा, आज न स्पंदित करता वह जग के द्वुम को

दुख है आह ! बहुत दुख है! तुम आज सभी को लगते भार
कुछ तो करके दिखलाओ ही, ओ सपनों के राजकुमार।

1941