seepi rachit ret

तुम इतनी सुंदर हो

तुम इतनी सुंदर हो जितना लाल-लाल पाटल का फूल
हरित घाटियों के अंचल में, या शरदेंदु पूर्णिमा का
नील गगन में उगने के क्षण, ज्योति-मधुर सरिता के कूल
जिसका स्वर्ण-चित्र हँसता हो किरणों से जल पर आँका।

तुम इतनी मधुमय हो मानो उमड़ चली मधु-सरिता ही,
गोरी सिकता की बाँहें फैलाकर, सागर से मिलने
चितवन चपल तरंग नचाती, या वसंत की मनचाही
कोई कमल कली मधु-उद्‌गम देख लगी हो ज्यों, खिलने।

तुम इतनी पावन हो जितनी गृह-मंदिर की दीप-शिखा,
स्नेहभरी भी अकलुष, अथवा प्रथम प्रेम की मृदु अनुभूति
किसी कुमारी के अंतर की, स्मिति की चंचल चमक दिखा
अरुण अधर पर, छिंपी तुरत जो, मुग्ध हृदय की बनी विभूति

यह सौंदर्य! मधुरिमा इतनी! तुम पवित्रता की देवी
देख रहा हूँ विस्मित-सा हो, मैं तो चरणों का सेवी।

1941