seepi rachit ret

नारंगी की नन्हीं-नन्हीं कलियों-सा कह दूँ इनको

नारंगी की नन्‍हीं-नन्हीं कलियों-सा कह दूँ इनको,
ये उतने ही मधुर प्रेम रस से पूरित हैं, सुंदर हैं,
पतले-पतले होंठ तुम्हारे, हुआ हृदय बेसुध जिनको
देख-देखकर, उन पीले रँग को कलियों से बढ़कर हैं।

ओसों से भीगी प्रभात-पाटल की कलिका खिली हुई
इनकी तरह बताऊँ मैं, जो दोनों, सुंदर और तरुण,
या कह दूँ इनको मैं, कोमल वह लहरों की छुईमुई
जो प्रिय-स्पर्श-कल्पना से ही रहती आठों पहर अरुण।

मुझे याद है सिहर उठे थे जो उस दिन नव किसलय-से
एक ओस की बूँद ढुलक आयी थी जब इनमें चुपचाप
काजल से काली, जाने किस मन के अनजाने भय से
प्रिय-वियोग के, अकस्मात ही, जब छाया था हास्य-कलाप।

आज हृदय को बेध रही हैं मधुर उन दिनों की बातें,
लौटेंगे क्या फिर वे सपनों-से दिन, वे दिन-सी रातें?

1941