shabdon se pare
धरती पर, अंबर के नीचे .
ज्ञात नहीं कुछ, कौन शक्ति जो लिये जा रही मुझको खींचे
स्वर्ण-जाल यह कैसा फैला!
छूते हाथ हुआ मटमैला
निकले मिट्टी से ही ये सब रंग-बिरंगे बाग-बगीचे?
किसने जड़ संसार बनाया,
चेतन का श्रृंगार कराया,
फिर अगणित चेतन प्राणों के मूल स्नेह से किसने सींचे ?
जग-कोलाहल बहता अविरल
किसमें समा रहे हैं दिशि-पल?
किसकी राज-सभा में जाते कोटि-कोटि जन आँखें मींचे ?
धरती पर, अंबर के नीचे
1943