shabdon se pare
पल-पल, प्रहर-प्रहर
टूटती ही जाती हर लहर
छोटी क्या और बड़ी क्या!
आड़ी, तिरछी क्या! पड़ी क्या!
जीवन के तीर पर छहर
पल भर भी पाँव जो टिका
खिसक गयी आप मृत्तिका
अपने ही बोझ से हहर
खींच रहा वय की कस डोर
एक शून्य जड़ता की ओर
काल तंतुवाय-सा ठहर
पल-पल, प्रहर-प्रहर
टूटती ही जाती हर लहर
1971