shabdon se pare
रात का चँदोवा घिर गया
सूरज का कलश गिर गया
तारों की छाया में चलना है
काजल के कक्ष से निकलना है
दीपक-सा तिल-तिल कर जलना है
पहुँचाकर बंधु फिर गया
नाव बल खा रही भँवर में है
डाँड़-पतवार नहीं कर में है
किसका मृदु स्पर्श हर लहर में है
फिर भी पाषाण तिर गया
रात का चँदोवा घिर गया
सूरज का कलश गिर गया
1980