tilak kare raghuveer

क्षमा का ही तेरी संबल है
नाथ! न मेरे पास किसी साधन, पूजन का बल है

भक्ति भाव भी मुँह पर केवल
जिसमें त्याग, विराग न तपबल
बाहर से कितना भी उज्जवल

भीतर छल ही छल है

अर्थ-काम-यश-लिप्सा भारी
सोख चुकी संचित निधि सारी
‘क्या है आगे की तैयारी’

सोच ह्रदय विह्वल है

काल खड़ा सम्मुख पथ घेरे
तंत्र-मंत्र सब निष्फल मेरे
तू यदि करुणा-दृष्टि न फेरे

कर्म-विधान अटल है

क्षमा का ही तेरी संबल है
नाथ! न मेरे पास किसी साधन, पूजन का बल है