tilak kare raghuveer

काल की हो अनंत भी धारा
पर क्या अमिट न मैं भी जल में बिंबित तेरे द्वारा!

जब इस धारा में बहना है
तेरा साथ सदा रहना है
तो फिर कुछ न मुझे कहना है

मुक्ति रहे या कारा

ग्राह लाख घेरें संशय के
अगति, विनाश, विलुप्ति, विलय के
पाकर तुझसे मंत्र अभय के

मरूँ न उनका मारा

यदि पूरे न परीक्षा मेरी
रहूँ निरंतर देता फेरी
लीलाभूमि जानकर तेरी

प्रिय हो यह जग सारा

काल की हो अनंत भी धारा
पर क्या अमिट न मैं भी जल में बिंबित तेरे द्वारा!