tilak kare raghuveer

पूछते भी अब तो डरता हूँ
तेरी किस उद्देश्य-पूर्ति को मैं जीता-मरता हूँ

सभा काल-विषधर से घेरी
क्षणिक दीप्ति, फिर रात अँधेरी
किसे दिखाने लीला तेरी

यह अभिनय करता हूँ?

जब आता हूँ यहाँ दुबारा
पिछला पाठ भूलता सारा
फिर नव बहा राग-रसधारा

क्यों ये सुर भरता हूँ?

सच कह दूँ तो इस छविगृह में
प्राण सदा रहते हैं सहमे
तेरी ही स्मृति कर रह-रह मैं

बस धीरज धरता हूँ

पूछते भी अब तो डरता हूँ
तेरी किस उद्देश्य-पूर्ति को मैं जीता-मरता हूँ