tilak kare raghuveer

यह मन बड़ा हठी है, नाथ!
पल भर भी न ठहरने देता मुझे आपके साथ

जब चरणों में ध्यान लगाता
खींच मुझे यह जग में लाता
जुड़ता नहीं आपसे नाता

माला भी लूँ गाँथ

मुँह आगे की थाली सरका
बढ़ता देख परोसा पर का
चिंता इसको दुनिया भर का

कुल धन आये हाथ

अपने लिए साधना सारी
आप देवता, आप पुजारी
सिर पर हाथ नाथ का भारी

फिर भी फिरे अनाथ

यह मन बड़ा हठी है, नाथ!
पल भर भी न ठहरने देता मुझे आपके साथ