tujhe paya apne ko kho kar

तुझको नमन करूँ सौ बार
ओ मेरे अन्तर्वासी, इन कृतियों के कृतिकार

जग कर मुझमे रातों अपलक
तू ही लिखता रहा आज तक
मुझको तो कवि कहता नाहक यह भोला संसार

स्वर प्रतिपल दुर्बल भी मेरा
क्षुद्र हुआ जाता हो घेरा
किन्तु अशेष कोष है तेरा क्यों टूटे यह तार !

जाने किन पुण्यों के फल से
फूटी कविता अंतस्तल    से
इस अक्षर-काया के बल से मरूँ न मैं बन क्षार

तुझको नमन करूँ सौ बार
ओ मेरे अन्तर्वासी, इन कृतियों के कृतिकार