usar ka phool

फूल खिला ऊसर में

अंबर ने अनुराग चढ़ाया
अनिल उसे हुलसाने आया
पागल बन परियों ने गाया–
‘ऐसा फूल न देखा और सुना था दुनिया भर में!
पथिक देखकर अचरज करता
बिधना की सौंदर्य-सुघरता–
‘ऊसर में इतनी उर्वरता!
सुरभि उड़े तो धूम मचेगी इसकी नगर-नगर में”
भाग्य उजाड़खंड में लाया
वह खिलने से बाज़ न आया
हृदय फूल ही का था पाया
अरमानों की हाट लगी थी छोटे-से अंतर में
सन-सन ग्रीष्म-पवन बहता था
धू-धू आसमान दहता था
वह फिर भी हँसता रहता था
मधु के सपनों में बेसुध उस जनरवहीन डगर में
क्यों तितलियाँ झुकें, मँडरायें।
कोयल ले किस तरह बलायें!
भौरे वहाँ कहाँ से आयें!
सूख गया रे वह बेचारा यों अपने ही घर में
फूल खिला ऊसर में

1940