usar ka phool

मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक

प्रेम की आकुल प्रचुरता
हृदय की रख सब मधुरता
छंद में जिसका किया तुम चाहती अभिषेक

मलय खिड़की खड़खड़ाता
श्वेत कागज़ फड़फड़ाता
और झट लिखती जिसे तुम नील नभ में देख

शब्द-यति-गति जोड़ अस्थिर
गुनगुनाती तुम जिसे फिर
अर्धलेटी, युग हथेली पर चिबुक-तल टेक

मैं तुम्हारे गीत की वह पंक्ति होता एक

1941