usar ka phool

मेरे गीत तुम्हारे ही तो हैं!

काली आँखों को करुणा-किरणों से
मधुर, मसृण अंचल के आवरणों से
जावक-गुंजित तरुण-अरुण चरणों से

कागज पर मैंने ये चित्र उतारे ही तो हैं

तुम हँस दीं तो कर कल्लोल उठे ये
रोयी तुम, छाया-से डोल उठे ये
रूप तुम्हारा पाकर बोल उठे ये

तुम से बिंबित मेरे दृग के तारे ही तो हैं

तुम मेरी हो, सारा जग यह कहता
मेरा हृदय तुम्हीं में बंदी रहता
मधुर मिलन-सुख ही गीतों में बहता

फिर विभेद निज-पर के बिना विचारे ही तो हैं
मेरे गीत तुम्हारे ही तो हैं!

1941