usar ka phool
गायन एक अपूर्ण रह गया
दो किशोर हृदयों ने मिलकर जीवन से विद्रोह कर दिया
जग ने जाँचा उन्हें, घेर कारा से दृष्टि, विछोह कर दिया
भूंल नहीं पाया नायक तो नयन प्रिया के नव जलधर-से
किंतु नायिका ने पत्थर को अर्पित अपना मोह कर दिया
चलता रहा काल का रथ, यौवन का नववसंत कब लौटा!
युग-युग खड़ा प्रतीक्षा-पथ पर जीवन एक अपूर्ण रह गया।
कवि ने देखा स्वप्न, स्वर्ग ने धरती से निज ब्याह रचाया
तारों-सहित इंदु सुरपति-सा, सरितट जलक्रीड़ा को आया
तिलोत्तमा, उर्वशी, मेनका अप्सरियाँ उतरीं फूलों पर
सजी अतनु की वीणा, कलियाँ हँसीं, मुग्ध कोयल ने गाया
पर पतझड़ की वायु न मानी, तार-तार तरु हुए निमिष में
नश्वरता के अभिशापों से नंदन एक अपूर्ण रह गया।
ज्योत्सना-दीपित विभावरी में, सघन रसाल-कुंज के नीचे
प्रणयी झुका चरण पर, बेसुध नयी बहू थी लोचन मींचे
लज्जित, पुलकित, गोरी बाँहें, मन का साथ नहीं दे पायीं
खिँची स्नेह-बंधन में भी, युग भौंहें रही धनुष-सी खींचे
सहसा रण-भेरी सुन कूदा पौरुष हाथ छुड़ा ज्वाला में
आँसू से गीले अधरों का चुंबन एक अपूर्ण रह गया
गायन एक अपूर्ण रह गया।
1948