usha

मैं धधक रहा बन प्रलय-ज्वाल
जलते जग के अणु-अणु, कण-कण, मेरी ज्वालाओं से कराल

मंत्रित शिशु से रवि-शशि-तारक
उदयाचल से अस्ताचल तक
सब स्तब्ध, मौन, विस्मित, अपलक
गति पर रुक-रुक दे रहे ताल

डग्-डग्, ब्रह्मांड, खगोल खसे
दिग्गज चिंघाड़ रहे भय से
धक-धक, त्रिनेत्र, गज-अजिन कसे
मैं नाच रहा ज्यों महाकाल

स्मिति सृजन बनी, भ्रू-पात प्रलय
मेरी करुणा से जग छविमय
मैं ही जड़-चेतन, ह्लास-उदय
मेरी ही पद-रेखा धरणी,
अंबर मेरा ही दीप्त भाल

मैं धधक रहा बन प्रलय-ज्वाल
जलते जग के अणु-अणु, कण-कण, मेरी ज्वालाओं से कराल