usha

मुझको न व्यथा से बहलाओ
ओ नभ की स्वर्णिम अप्सरियों! आलिंगन में रुक तो जाओ

तुम चिर-चंचल, चिर-भीत-नयन
मेरी पलकों के खोल अयन
रजनी में शिशु-सी करो शयन
वरुणी में चरण न उलझाओ

तुम चिर-सुषमित, चिर-स्वप्न-गात
मेरी साँसों में आत्मसात्‌
ठहरो तो उर पर एक रात
पल भर में, हाय! न कुम्हलाओ

तुम चिर-कोमल, तुम चिर-उदार
चूमे अधरों का व्यथा-भार
सब मधु न उड़ेलो एक बार
कण-कण, प्राणों में बरसाओ

मुझको न व्यथा से बहलाओ
ओ नभ की स्वर्णिम अप्सरियों! आलिंगन में रुक तो जाओ