usha
ओ मन की हलचल ! ठहर, ठहर
मेरे जीवन में बिखर रहे, सुख-दुख की गिन लूँ लहर-लहर
चुबित अथरों का पीड़ायें
रो रहे नयन की क्रीड़ायें
शत हार-जीत की व्रीड़ायें
गुंजित हैं जिनसे प्रहर-प्रहर
कल के लघु तारक आज इंदु
रवि-मंडल रज के रजत बिंदु
कण बनते जाते महासिंधु
जीवन के तट पर छहर-छहर
मैं देख रहा यह भाग-दौड़
चिति के दिग-देशज बंध तोड़
कल्पना ईश से लिये होड़
बढ़ती अनंत में हहर, हहर
ओ मन की हलचल ! ठहर, ठहर
मेरे जीवन में बिखर रहे, सुख-दुख की गिन लूँ लहर-लहर