vyakti ban kar aa
ओ मेरे मन! दीन हो जा।
सागर की गहराइयों में खो जा,
अंबर की ऊँचाइयों में लीन हो जा।
तू न पंडित है, तू न ज्ञानी है
योगी है न सिद्ध है न ध्यानी है
बन जा निरुपाधि, रूपहीन हो जा।
शून्य की गुफाओं में उतरता जा
रिक्तताओं से झोली भरता जा
चिर-अनस्तित्व में विलीन हो जा।
ओ मेरे मन! दीन हो जा।