vyakti ban kar aa
तू मुझे अपने से दूर-दूर क्यों रखता है ?
क्या तू मेरे प्रेम को परखता है
कि मैं सचमुच तुझे पाना चाहता हूँ या नहीं ?
तेरे पास आना चाहता हूँ या नहीं ?
या तुझे संदेह है
कि मेरा प्रेम केवल औपचारिकता है
जो विपत्तियों के झंझावात में पल पर भी नहीं टिकता है ?
मैं द्वार पर द्वार खोलता जाता हूँ,
पर कहीं तेरी एक झलक भी नहीं पाता हूँ।
यह कैसा वीरान महल है
जहाँ नियम तो हैं, नियामक दिखाई नहीं देता!
संगीत की धुन तो सुनाई देती है,
वादक दिखाई नहीं देता!
ओ पिता! मैं तेरे घुटनों पर मस्तक टेकना चाहता हूँ,
तुझे निकट से देखना चाहता हूँ।
कैसी है वह रंगशाला
जहाँ से तू चाँद-सूरज के गोले लुढ़काता है
बैठा-बैठा गूँथता है तारों की मणि-माला?