vyakti ban kar aa

धरती में गड़ा बीज चिल्लाया—
‘मुझे अँधेरे से प्रकाश में आने दो,
खुली हवा के झोंके खाने दो,

मुझे चाहिये फूल की-सी कोमल काया।’

डाल पर खिला फूल बुदबुदाया–
‘अस्तित्व पीड़ा है, दंशन है,
इसकी आकांक्षा पागलपन है,

मूढ़! यह कुविचार तुझे किसने सुझाया?’

इतने में वर्षा का झोंका आया
बीज अंकुर बन कर फूट गया,
फूल अपनी डाल से टूट गया,

जीवन का रहस्य कोई जान नहीं पाया।