vyakti ban kar aa

मुझे मिटा नहीं सकोगे
मैं सहस्रबाहु हूँ,
दो-चार भुजायें छँट ही जायेँ तो क्‍या!
मैं सहस्रशीर्ष हूँ,
दो-चार मस्तक कट ही जायँ तो क्‍या!
मेरी थाह पा नहीं सकोगे।
मैंने, पानी पर नहीं,
पत्थर पर लकीरें खींची हैं,
अपने हृदय का बूँद-बूँद रक्त देकर
इस अश्वत्थ की जड़ें सींची हैं,
तुम इसे सुखा नहीं सकोगे।
मेरी पराजय की युक्ति पूछते हो!
तो वह भी मुझसे ही सुन लो;
इस रेखा से बड़ी कोई रेखा खींच दो,
इन रंगों से गहरा कोई रंग चुन लो;
यों सहज ही मुझे भुला नहीं सकोगे।
मुझे मिटा नहीं सकोगे।