aayu banee prastavana
एक मृदु स्पंदन अपना है
शेष सपना ही सपना हैं
‘तड़ित-सी हँसी, सरित-सा गान
चाँदनी-सी चितवन अनजान
स्पर्श से छुईमुई-से प्राण!
हृदय की मधुर कल्पना हैं
एक परिचित क्षण अपना है
‘भौंह कज्जल, बिंदीयुत भाल
स्निग्ध दीपक-से नयन विशाल
गौर भुज पर बिखरे कच-जाल’
रूप की लौ में तपना है
एक घायल मन अपना है
‘साँस सुरभित, नव पिक-से बोल
अधर कंपित, मधुभरे कपोल
वक्ष का कल्लोलित हिल्लोल’
चाँद के लिए तड़पना है
एक स्मृति का कण अपना है
शेष सपना ही सपना है
1948