ahalya

यह कमल नहीं अंगार, अपरिवर्तित जिस पर
मैं चिर अनादि- से एकाशन शासन-तत्पर
मुझसे तो अच्छे देव, मनुज, हँसकर रोकर
सुख-दुख में लेते जो नूतन आकृतियाँ धर
चढ़ जन्म-मरण-दोलों पर

जिनको चिर-सुलभ प्रेम की आकुल कातरता
मृदु मिलन-विरह के स्पंदन, क्षण की नश्वरता
दुख विह्लल करता जिनको, छलती सुंदरता
यों नहीं अमरता लिये हृदय जिनका मरता
छवि के स्वर अनबोलों पर’