ahalya

गौरांग, स्वस्थ, तप-पूत, ज्योति के सायक-से
पुरुषोत्तम सर्व-गुणोपम, विश्व-विधायक-से
वन मध्य खड़े थे गौतम ऋतुपति-नायक-से
कंपित लतिका के भाव-सुमन सुख-दायक-से
चरणों पर बिखर रहे थे

उज्जवल ललाट, घनश्याम लहरते केश-जाल
गैरिक पट, कटि-तट कसे, कंठ-धृत सुमन-माल
गंभीर, धीर, छवि-दीप्त, चेतना ऊर्ध्व-ज्वाल
प्रतिभा-प्रतिभासित, यशोदीप्त, कृश भी विशाल
क्षण-क्षण तप निखर रहे थे