ahalya
जड़ गया भाल पर बिंदु, अरुण किरणों से घिर
मुख तरुण इंदु-सा पिये अधर वारुणी मदिर
झुक किया पवन ने स्तवन अलक-दोलों में तिर
सुरराज बढ़े छवि-मुग्ध, चकित, बेसुध, अस्थिर
छवि का स्वागत करने को
दानव दौड़े, ‘इस बार प्राण क्या रहे शेष!
ले गयी अमृत-घट एक बार तो छद्य-वेष’
वासुकि विचलित, संत्रस्त जलधि, भू, नभोदेश
मच गयी खलबली देवों में, उन्मद महेश
भुजपाशों में भरने को