ahalya

यह कौन कक्ष में पूनो शशि-सा मंदस्मित
धकधक करता था हृदय, चेतना तमसावृत
‘ऋषि लौटे निशि-भ्रम जान कि प्रिय प्राणों में स्थित?
कटंकित, अपरिचित नि:श्वासों से आकर्षित
सर्वांग शिथिल, भय-कातर

अवसन्न गौतमी, झलका ज्यों दव-सा समक्ष
‘यह इंद्रजाल रच रहा कौन गन्धर्व, यक्ष?
फूले फेनिल जलनिधि-सा उठ-उठ मुकुर-वक्ष
द्रुत गिरा, मृगी-सी चौंक, चकित सहसा अलक्ष
सकुची सुन प्रेमभरे स्वर