ahalya

‘सोये मानस में जिसके मृदु सपने जगते
पदचाप मौन जिसके जीवन का पथ रँगते
यह वही कि शंकित मुनि माया बल से ठगते ?
सब जैसे पिछले जन्मों की स्मृति-से लगते
ये दृश्य आज के अदभुत’

पल एक चपल-मन रही गौतमी रुद्ध-ज्वार
बोले सुरपति आवरण जरठता का उतार
‘रानी! कब तक तड़पें दो जीवन बिना प्यार ?
यह सुर-दुर्लभ छवि बलि जिस पर शचियाँ हज़ार
क्यों रहे भूमितल पर च्युत?’