ahalya

जाज्वल्यमान शत भानु, अतल-पद, मेरु-शीष
बन मिटते क्षण-क्षण भूत-भविष्यत्‌ के क्षितीश
देखा फिर सिंधु लाँघते दल, भल्लुक-कपीश
शलभों से निशिचर, रावण खरदूषण, त्रिशीष
शर-द्युति में होते लय-से

करते नभ से जयघोष देव-किन्नर समस्त
शत कोटि भुजा भाव-व्याप्त, सृजन-संहार-व्यस्त
दिग-काल-भ्रष्ट देखे खगोल शत उदित, अस्त
अभिवादन-मिस माँगते क्षमा संपुटित-हस्त
दृग झुके भूमि पर भय से