ahalya

‘जय राम! ज्योति के धाम! विगत-भय-काम-क्रोध !
करुणा के सागर! दीनबंधु! भव-मुक्ति-शोध!
मैं पाप-निमग्ना, भग्ना, दुख-लग्ना, अबोध
दे शरण चरण की, नाथ! हरो मन का विरोध,
यह चिर-कलंक धुल जाये

अनुरागी मन के पावन पति पर ही उदार
मैं हाय! अभागिन, नागिन-सी कर उठी वार
प्रभु शिला बन गयी नारी शिर ले शाप-भार
तुम, देव! खोल दो आज हृदय के रुद्ध द्वार
जड़ता नव-जीवन पाये