ahalya

‘दुख भोग रही जो कर्म-चक्र-भ्रमिता, सकाम
प्रभु! बिना तुम्हारे आत्मा को मिलता विराम?
नारी अधमा, उस पर वामा मैं सतत वाम,
कैसे छू लूँ ये चरण सरोरुह मुक्तिधाम
भव-जलनिधि के बोहित से

‘जिन चरणों में जीवन का मंगल-स्रोत निहित
शीतल, कोमल, त्रय-ताप-हरण, सुर-मुनि-पूजित,
अशरण के शरण, तड़ित-विजड़ित-घन-शोभा-जित,
इस कंटक-वन में आये जो मेरे ही हित,
आनंदभरे सत्‌-चित्‌-से