ahalya

‘अंतर में जो भी कलुष, पाप, लांछना, व्यथा
सब बनें आज कंचन-सी पारस परस यथा
कैसे कह दूँ मैं, देव! कि जीवन गया वृथा
जब जुड़ी अहल्या के सँग पावन राम-कथा
कल्याणी, मंगलकारी!

जलता न हृदय में ग्रीष्म, नयन सावन होते!
क्यों आते जग में राम न जो रावण होते!
होते न पतित तो कहाँ पतित-पावन होते!
प्रभु! चरण तुम्हारे कैसे मनभावन होते
बनती न शिला जो नारी!’