anbindhe moti

ऐसी तुम्हारी याद है, ऐसी तुम्हारी याद है

रोने नहीं देती मुझे
सोने नहीं देती मुझे
पल एक भी सुस्थिर कहीं,
होने नहीं देती मुझे
लगता कि जैसे जिंदगी बरबाद ही बरबाद है

उर में कसकती पीर है
बँधता न पल भर धीर है
यह रात है अथवा किसी
कृष्णा-वधू का चीर है
जैसे समय का अंत अब कुछ भी न इसके बाद है

हर बात है बेकार-सी
हर साँस है निःसार-सी
उर-धड़कनें भी प्राण को,
लगतीं घनों की मार-सी
तुम दूर हो, प्रिय ! आज जीने में नहीं कुछ स्वाद है
ऐसी तुम्हारी याद है, ऐसी तुम्हारी याद है

1948