anbindhe moti

कल्पने, तू क्‍यों बैठी हार !
नील गगन में उड़ चल, पगली, सातों सागर पार

तुझसे ही जीवन जीवन है, तुझसे ही संसार
तेरी ही माया है जड्‌ में चेतन का व्यापार
तड़ित-पंख मेघों पर बैठी, सुरधनु-पंख पसार
पहुँच रामगिरि से अलका पर दिशि-दिशि चक्कर मार
कभी शेष के सलिल-देश में माया कर विस्तार
विलुलित वेणी नागवधु से सुने मंगलचार
मैं योगी-यागी न, खुले जो दिखें क्षितिज के द्वार
ला तू ही उर्वसी-सहित नंदन वन यहीं उतार
दिखा क्षितिज के पार भरे जो कंचन-रत्न अपार
शास्वत यौवन, चिर-वसंत के कूजित क्रीड़ा गार

कल्पने, तू क्यों बैठी हार !
नील गगन में उड़ चल, पगली, सातों सागर पार

1943